पहाड़ी कविता " मित्राँ री गल्लाँ "

" मित्राँ री गल्लाँ " (बिलासपुरी बोली) मित्राँ री गल्लाँ मुकी गईयाँ, हुण पुराणे मित्र नी मिलदें, पैसा कमाणे रे चक्करा च, पुराणे मित्र व्यस्त होई गे, बचपना री गल्लाँ कने खेलाँ हुण मुकी गईयाँ, हुण मित्राँ जो मित्राँ ने मिलणे रा टाईम नी मिलदा, इकी जगह बैठी ने, चार गप्पा सुनने सुनाणे रा, हुण टाईम नी रहेया, हुण चलदे फिरदे मिलदे मित्र, हाथ मिलायी ने चली जाँदे, अपणे अपणे काम्म धंधे च, सारे मित्र व्यस्त होई गे, मित्राँ री गल्लाँ मुकी गईयाँ, हुण पुराणे मित्र नी मिलदें। पहाड़ी लेखक- सुनील शर्मा गाँव लद्दा तहस...