पहाड़ी कविता "पहाड़ा रा जीणा"


                            पहाड़ा रा जीणा

                              (बिलासपुरी बोली)




"पहाड़ा रा जीणा"

पहाड़ा रा जीणा कने खाणा पीणा लाजबाब,
छलियाँ री खाणी रोटी कने सरों रा खाणा साग,

बरसाती रे मौसम च खूब खाणे पतरोड़े कने पल्ले,
पहाड़ा रा जीणा कने खाणा पीणा 
लाजबाब,

ब्याह रा नियुंद्रा देने पर बनाने बबरू फेरी सदने सारे रिश्तेदार,

खेता करना काम, 
बाणी छलियाँ कनक कने धान,
पहाड़ा रा जीणा कने खाणा पीणा लाजबाब।

दियालियाँ रे त्योहारा रे दिन बननी ऐंकलियाँ कने पल्ले,
लोहड़ी रे त्योहारा रे दिन बननी माह री दाली री खिचड़ी,



प्यागा ऊठी ने पीना रोज चायी रा ग्लास,
पहाड़ा रा जीणा कने खाणा पीणा लाजबाब।




                                   पहाड़ी लेखक-सुनील शर्मा

                           गाँव लद्दा तहसील घुमारवीं
                           जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

पहाड़ी कविता "चिट्ठा नशा"

पहाड़ी कविता "हिमाचली टोपी"

पहाड़ी कविता "नया जमाना" (बिलासपुरी बोली)